गांधीवादी सिद्धांतों पर चलने का मेरा वास्तविक अनुभव क्या है?

 गांधीवादी  सिद्धांतों  पर चलने का आपका  वास्तविक अनुभव क्या है?



आपका सवाल वास्तव में उच्च 

कोटि का  है।

सबसे पहले हम जानेंगे कि गांधीवादी सिद्धांत  क्या है?


गांधीवादी सिद्धांत एक दो धारी तलवार की तरह है जिसका मुख्य उद्देश्य सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों के अनुसार समाज को बदलना है!

"वैसेे तो मोहनदास करमचंद गांधी"

(महात्मा गांधी जी) सत्य और अहिंसा के पुजारी थे लेकिन राजनीतिक गलियारों में यह बातें भी सुनी जाती है. कि महात्मा गांधी ने ही सरदार वल्लभ भाई पटेल को भारत का पहला प्रधानमंत्री नहीं बनने दिया. कहते हैं कि राजनीतिक षड्यंत्र के कारण सरदार वल्लभभाई पटेल को प्रधानमंत्री पद से वंचित होना पड़ा. कुछ लोग मानते हैं कि इस षड्यंत्र का श्रेय केवल और केवल महात्मा गांधी जी को ही जाता है.

"महात्मा गांधी जी का कहना था कि अहिंसा परमो धर्म"

अनुवाद: अहिंसा मनुष्य का परम धर्म।  

कभी भी किसी प्रकार की हिंसा नहीं करनी चाहिए यही मनुष्य का सबसे बड़ा धर्म है।


लकिन उन्होंने कभी पूरा श्लोक नहीं बोला  ।क्यों  नहीं  बोला यह तो मुझे नहीं पता लेकिन अगर पूरा श्लोक  बोला जाए तो इसका अर्थ पूरी तरह से  बदल जाता है. पूरा श्लोक कुछ इस  प्रकार है.....

"अहिंसा परमो धर्म :धर्म हिंसा तथैव च।

अहिंसा मनुष्य का परम धर्म है ।लेकिन धर्म की रक्षा के लिए हिंसा करना ही धर्म है।

अर्थात मनुष्य को स्वभाव से अहिंसा वादी होना चाहिए लेकिन धर्म की रक्षा के लिए सदैव ही हथियार उठा लेना चाहिए क्योंकि धर्म की रक्षा के लिए हिंसा करना जरूरी है।

गांधीवादी सिद्धांतों पर चलने का मेरा वास्तविक अनुभव मैं आपको बताऊं तो वो कुछ इस प्रकार से हैं।

"जब अंग्रेज भारत में आए थे तब मैं राजा होता तो मेरा अनुभव क्या होता"

मेरा सेनापति आता और बोलता कि महाराज हमारे राज्य की सीमा में अंग्रेजों की टुकड़ियों आ चुकी है  ओर  वो हमें युद्ध के लिए ललकार रही है!

तो मैं कहता" हे  सेनापति अहिंसा ही परमो धर्म है। इसलिए हमें युद्ध नहीं लड़ना चाहिए। जाओ और  अंग्रेजों से बात करो। उन लोगों को अहिंसा का पाठ पढ़ाओ और कहो   कि  हिंसा करना पाप है।

"आपको क्या लगता है मेरा सेनापति अंग्रेजों को अहिंसा का पाठ पढ़ाता और वो लोग मान जाते, क्या वो लोग मेरे राज्य की सीमा को छोड़ कर चले जाते, कभी नहीं जाते बल्कि निश्चित ही वो मेरे राज्य पर कब्जा कर लेते और मुझे बंदी बनाकर कारागार में डाल देते।

"अगर मैं एक सैनिक होता तो मेरा अनुभव कैसा होता?

मुझे बॉर्डर पर तैनात कर दिया गया है हमारी एक बटालियन है जिसमें हम कुल 40 जवान हैं, हम बॉर्डर की निगरानी कर रहे हैं बड़े अच्छे से, इतने में कुछ घुसपैठियों ने हमारी धरती पर घुसने की कोशिश की, तो मेरे सीनियर ऑफिसर ने हम लोगों को यह आदेश दिया की शुट करो इन आतंकवादियों को,  लेकिन   मैं अपने साथी जवानों को समझा रहा हूं कि नहीं हमें इन लोगों पर गोली नहीं चलानी हैं, क्योंकि अहिंसा ही परमो धर्म है। और अगर वह लोग मेरी बात को मान जाते हैं तो क्या होगा? वो घुसपैठिए हमारे देश में घुस जाएंगे और मेरे देश के निर्दोष लोगों को मौत के घाट उतार देंगे।


"इसी प्रकार अगर मेरे घर में कोई चोर घुस जाए या डाकू घुस जाए और मुझे मारने की कोशिश करें जब भी मैं उनको यह बोलूं, कि ,अहिंसा ही परम धर्म है,

गांधीवादी सिद्धांत पर मेरा यही अनुभव है कि श्री महात्मा गांधी जी ने ,आधा श्लोक का उच्चारण कर बहुत बड़ी गलती की थी। क्योंकि अहिंसा परमो धर्म का रास्ता सिर्फ हिंदुस्तान के लोगों ने ही अपनाया था। गोरे अंग्रेजों ने नहीं। और यह बात महात्मा गांधी को अवश्य ही पता थी। अगर महात्मा गांधी जी ने उस वक्त पूरा श्लोक बोल दिया होता तो आज भारत की तस्वीर कुछ अलग होती।


अहिंसा परमो धर्म :धर्म हिंसा तथैव च।

वो तो भला हो भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, राम प्रसाद बिस्मिल, वह राजगुरु जैसे क्रांतिकारियों का जिन्होंने ,पूरे श्लोक को समझते हुए राष्ट्र  हित के लिए, धर्म के हित मे, क्रांति का आगाज कर दिया, और देश आजाद हो गया ,वरना महात्मा गांधी जी के आधे श्लोक की विचारधारा देश को आज तक गुलामी की बेड़ियों में जकड़े रहती।   वैसे तो भारतवर्ष में आदि काल से अहिंसा वादी लोग ही रहते हैं, लेकिन इसी भारत में धर्म की रक्षा के लिए महाभारत का युद्ध  भी  लड़ा गया था,

"और उसी युद्ध में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को समझाते हुए यह श्लोक बोला था कि, हे पार्थ. मनुष्य का स्वभाव अहिंसावादी होना चाहिए, लेकिन मनुष्य की विचारधारा सदैव ही

अहिंसा परमो धर्म :धर्म हिंसा तथैव च। 

यह होनी चाहिए, क्योंकि जो धर्म के विरुद्ध खड़े हैं, उनका वध करना ही धर्म है, भले ही 

इसमें हिंसा करनी पड़े,

"लेकिन महात्मा गांधी ने भारत के युवा क्रांतिकारियों को कभी भी यह श्लोक व्याख्या सहित नहीं समझाया, जो राष्ट्र के लिए एक बहुत बड़ी क्षति थी।

अगर वर्तमान में आप गांधीवादी सिद्धांतों पर चलने की कोशिश करोगे तो आपके साथ यह हो सकता है।

"अहिंसा परमो धर्म:"अगर यह श्लोक पूरी दुनिया में एक साथ लागूूू हो, सभी लोग इसका पालन करें तभी यह कारगर साबित हो सकता ह, अन्यथा इस श्लोक का सकारात्मक परिणाम नहीं मिलेगा!

वर्तमान में अगर, कहीं पर आपके दोस्त को कुछ गुंडे पीट रहे हैं, और आप  अहिंसावादी विचारधारा का चोला ओढ़े सब कुछ देख रहे हैं और खामोश हैं, तो क्या फायदा होगा इस आधे श्लोक का, अगर जीवन में अपनाना ही है, तो यह पूरा श्लोक अपनाओ। तभी तुम एक असली योद्धा कहलाओगे।

महान क्रांतिकारी


(मेरा अनुभव तो यह कहता है कि इस  आधे श्लोक का अर्थ कायरता है)

अगर जीवन में अर्जुन जैसा योद्धा बनकर जीना है, तो आपको अपने जीवन में यह पूरा श्लोक अपनाना होगा, तभी आप, धरा .आकाश .पवन. पानी. प्रकाश .धर्म .व अपने आप नयाय  दिला पाएंगे!


अहिंसा परमो धर्म :धर्म हिंसा तथैव च। 

सभी पाठकों का बहुत-बहुत धन्यवाद

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