क्या किसान आंदोलन का राजनीतिकरण हो रहा है
किसान आंदोलन का राजनीतिकरण
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किसान आंदोलन |
एक तरफ कुछ लोग दावा कर रहे हैं की किसान आंदोलन का राजनीति से कोई लेना देना नहीं है। लेकिन तमाम दावों के बावजूद। किसान आंदोलन का राजनीतिकरण होने लगा है। आंदोलनकारी मुखिया बार-बार इस आंदोलन से राजनीति को दूर रखने की बात करते हैं। लेकिन अब यह लोग ही राजनीति करने लगे। जो कि सही नहीं है। किसान मोर्चा के नेता बलवीर राजे वालों ने प्रदेश की भाजपा सरकार को गिराने की बात कहकर राजनीति तेज कर दी है जिसका अब खाप के प्रतिनिधि व अन्य लोग विरोध करने लगे हैं।
"किसान आंदोलन एक संविधानिक आंदोलन है। अगर इस आंदोलन में किसी भी प्रकार का राजनीतिकरण होता है तो यह दुर्भाग्यपूर्ण होगा"
"नोट: हमने एक पोस्ट में कृषि कानून के तीनों बिलों के बारे में संक्षिप्त में समझाया है अगर आपने वह पोस्ट नहीं पढि तो पढ़ लीजिए"
एक सिक्के के दो पहलू होते हैं यह तो आपने सुना होगा। इसी प्रकार इन तीनों बिलों में कुछ अच्छा ही है और कुछ बुराई है। हम यह कह सकता हूं की 20 परसेंट अच्छाई है और 80 परसेंट बुराई है। क्या ऐसा नहीं हो सकता कि इन कृषि कानूनों में संशोधन नहीं हो सकता?
"खैर छोड़िए:
शायद आपने एक बात नोटिस की होगी?! कि जब से किसान आंदोलन शुरू हुआ है तब से लेकर अब तक"हमारा देश हमारी सोसाइटी हमारा समाज दो भागों में बंट चुका है! कुछ बीजेपी को नीचा दिखाना चाहते हैं इसलिए किसान आंदोलन की तरफदारी कर रहे हैं! और कुछ लोग बीजेपी को सपोर्ट कर रहे हैं इसलिए किसान आंदोलन का विरोध कर रहे हैं!"यह देश का दुर्भाग्य है"कि हम लोग सच्चाई को सपोर्ट नहीं करते"मेरा किसी भी पार्टी से या किसी भी आंदोलन से कोई लेना देना नहीं है! लेकिन सोचिए! अगर हम किसी को बचाने के लिए एक गलत का सपोर्ट करेंगे तो क्या देश के लिए सही है! मुझे कमेंट बॉक्स में जरूर बताना
क्या मोदी सरकार को किसानों की बात मान लेनी चाहिए?
लेकिन मुझे लगता है कि मोदी सरकार को किसानों की बात मान लेनी चाहिए! क्योंकि सारे किसान इन तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ है! अब उनका अपना मत है कि वह इन कानूनों को एक्सेप्ट नहीं कर रहे हैं तो फिर सरकार क्यों बेवजह इन तीनों कृषि कानूनों को किसानों पर थोप रही हैं! अरे भाई उन्होंने मना कर दिया कि हमें यह कानून नहीं चाहिए! तो बात खत्म आप इन तीनों कानून को रद्द कर दीजिए ना!
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