क्षेत्रीय कार्य पर मेरा अनुभव (मानव संवेदना)

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 My experience on field work (human compassion)

अगर आप ऐसा अनुभव करते कि आप "मानव संवेदना से रहित है! तो हो सकता है आप किसी मानसिक बीमारी से ग्रस्त हो।



आज मैं जो आपको बताने जा रहा हूं!मुझे नहीं पता यह मेरा अनुभव है या मेरी "मानव संवेदना "है
क्योंकि कहीं पर भी इंसानियत के नियमों का उल्लंघन होता है। मैं वहीं से सोचना शुरु कर देता हूं।

एक बहुत बड़ी मिठाई की दुकान में ग्राहकों की भीड़ लगी हुई थी। सेठ जी को  हा.  हु. कहने की भी फुर्सत नहीं थी
"मैं भी उसी दुकान पर आया था क्योंकि मुझे 1 किलो रसगुल्ले लेने  थे ।  उसी  दुकान में         कुछ लोग पीछे कुर्सियों पर बैठे समोसा कचोरी खा रहे थे। उनमें से एक बोला.......... अरे समोसा गरम लाओ भाई. तो सेठ जी एकदम से पलटते हुए. (छोटू से बोलते हैं जो कि उसी दुकान में काम करता है. और मुझे लगता है कि शायद वह बिहार से था)

सेठ जी"अबे साले तुझे बार-बार कहना पड़ता है क्या! तुझे समझ में नहीं आता समोसा गरम करके देना है ?


छोटू"नजरे झुकाते हुए'सेठ जी मैंने समोसे गर्म करके दिया था... और थोड़ा ऊपर देखता है।


सेठ जी"अबे तू गलतियां करना छोड़ दे वरना बहुत महंगा पड़ेगा तुझे!  पता नहीं साले कहां कहां से चले आते  है !चलो जाओ अपना काम करो!
"और छोटू जल्दी से इधर उधर पड़ी जुंठी प्लेटें उठाने लगता है!
'यह  मंजर  देखकर' वहां खड़े लोग क्या सोच रहे होंगे! यह तो मुझे नहीं पता!! लेकिन मैंने जो महसूस  किया मेरे अंदर जो संवेदना की भावना  उत्पन्न  हुई वह मैं  आपको इस पोस्ट में बताऊंगा..!

"छोटू जल्दी-जल्दी काम कर रहा था! शायद उसे एक पल भी रुकने कि मोहलत नहीं थी। लेकिन उसके चेहरे का भाव शून्य था!  और मैं उसकी मजबूरियों को उसके शुन्य भाव वाले चेहरे पर भी पढने कि कोशिश कर रहा था। छोटू अपने काम में इतना व्यस्त था कि वह किसी से नजरें नहीं मिला रहा था। या फिर मिलाना नहीं चाहता था क्योंकि सेठ उसको बार-बार लज्जित कर रहा था और वह भी इतने लोगों के सामने। "सेठ ने मुझे कहा हां भाई साहब बोलिए आपको क्या लेना है? मैंने कहा जी मुझे 1 किलो रसगुल्ले लेने हैं। तो सेट बोला भाई रसगुल्ला को डिब्बे में पैकिंग करवा दु ?मैंने कहा हां सेठ जी करवा दीजिए। और फिर सेठ ने छोटू को पुकारा....
"अरे छोटू डिब्बे में 1 किलो रसगुल्ला पैकिंग कर दो भाई साहब को।
तो छोटू बड़ी फुर्ती से आता है और सेठ जी के हाथ से डिब्बा लेता है और तुरंत रसगुल्ले पैकिंग करना शुरू कर देता है! मैं छोटू की तरफ ही देख रहा था वो बहुत ही सफाई से रसगुल्ले पैकिंग कर रहा था। लेकिन सेठ जी को इसमें भी उसकी गलती नजर आई और बोले"अबे ओ पागल यह क्या कर रहा है तू'ऐसे कोई रसगुल्ला पैकिंग करता है क्या? डिब्बे में चाशनी बिल्कुल भी नहीं जानी चाहिए
"तो मैंने कहा कोई बात नहीं बहुत अच्छे से पैकिंग किया है"
तो सेठ जी ने कहा"अरे भाई साहब हमें  ग्राहक कि सुविधाओं का ध्यान रखना पड़ता है यह हमारा फर्ज है.
"मैंने कहा ठीक है जी"

लेकिन अपने नौकर के साथ बदतमीजी से पेश आने पर ग्राहक संतुष्ट नहीं होता है। बल्कि मुस्कुराइए अपने ग्राहकों के साथ भी और अपने नौकर के साथ भी।
"सेठ जी मेरी बात को अनसुना करते हुए"
यह लीजिए  आपका डिब्बा ₹140 दीजिए
"मैंने पैसे दे दिए और डिब्बा ले लिया"

"छोटू ने मेरी तरफ आशा कि निगाह से देखा"

शायद उसने मेरे अंदर छिपी संवेदना  को पहचान लिया था!
कदाचित उसने मुझसे 'मदद' की अपेक्षा भी की होगी'  बिलकुल वैसे ही जैसे एक पिंजरे में बंद पक्षी'  खुले गगन में उड़ने वाले पक्षी से करता है' पर अफसोस कि में उसकी मदद नहीं कर सका। लेकिन मैंने उसे हैप्पी न्यू ईयर जरूर बोला और बहुत खुश हुआ। बदले में उसने भी मुझे हैप्पी न्यू ईयर कहा'उसके चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान थी जिसे मैं पढ़ नहीं सका'शायद वो मुस्कान शुभ आशीष थी मेरे लिए!

मैं चाह कर उसकी आर्थिक मदद नहीं कर सकता था , क्योंकि मेरी भी आर्थिक स्थिति इतनी मजबूत नहीं थी. इसलिए मेरी स्थिति भी बिल्कुल उस पक्षी की तरह थी जो गगन में उड़ते हुए देखता है कि कोई दूसरा पक्षी पिंजरे में कैद है।
"फिर मैं दुकान से निकला और घर की तरफ चल दिया"
प्रिय पाठको क्या कुसूर है उस छोटू का जिसे इतनी जिल्लत की जिंदगी जीनी पड़ती है? उसे वो मान सम्मान क्यों नहीं दिया जाता जो एक मेहनत करने वालों को मिलना चाहिए? बड़े-बड़े रेस्टोरेंट्स होटल्स वह दुकानों में काम करने वाले मजदूरों को गाली दी जाती है   बेज्जत किया जाता है'सिर्फ इसलिए कि वह आपके यहां नौकरी करता है. अरे आप उस बच्चे में अपने बच्चे को देखिए शायद आपके अंदर सोई हुई संवेदना जाग जाए हैं.

नौकर और मालिक का रिश्ता पिता- पुत्र जैसा होना चाहिए।
'मैं सारा दिन यही सोचता रहा कि क्या स्वार्थ के बिना मान सम्मान नहीं होता है? सेठ को मुझसे स्वार्थ था क्योंकि मैं उसका ग्राहक हूं।
इसलिए सेठ मुझेसे मान सम्मान से बात कर रहा था।
लेकिन छोटू से उसे कोई स्वार्थ नहीं था इसलिए वो उससे इतनी बदतमीजी से बात कर रहा था
'अगर आप किसी मजबूर की बेजती कर रहे हो तो यकीन मानिए आप सही मायनों में इंसान नहीं है। बल्कि आप पशुओं से भी गए गुजरे हैं। 

"मैं आप सभी को साक्षी मानकर यह वचन देता हूं कि जिस दिन में आर्थिक रूप से सक्षम हुआ उस दिन से छोटू जैसे लोगों की मदद जरूर करूंगा"

हे प्रिय पाठकों अपने अंदर संवेदना को कभी मरने मत देना क्योंकि अगर आप में दया है तो आप एक उच्च कोटि के इंसान हैं भले ही आपके पास पैसे ना हो.  रुतबा ना हो. पर संवेदनशील मनुष्य हमेशा ही बधाई के पात्र व ईश्वर का प्रिय होता है।

(मेरे सभी प्रिय पाठकों का बहुत-बहुत धन्यवाद)


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