जीवित भगवान के काव्य का सारांश क्या है?

 जीवित भगवान की कविता का सारांश क्या है?



"आदिकाल से ही मनुष्य ईश्वर की खोज करता रहा है। भिन्न भिन्न धर्मों में ईश्वर को खोजने की अलग-अलग प्रक्रिया बताई गई है। इसी प्रकार हिंदू धर्म में ईश्वर से मिलने के लिए ।निम्नलिखित व्यवस्था बनाई गई है
1, योग साधना
2, आध्यात्मिक साधना
3, कठोर हट योग साधना
4, ध्यान समाधि
इन चारों व्यवस्था को हम पोस्ट के अंतिम भाग में पढ़ेंगे.....

आइए अब जानते हैं, जीवित भगवान के काव्य का सारांश क्या है?
भागवत गीता के अनुसार ईश्वर का कोई रूप नहीं है, किंतु ईश्वर ब्रह्मांड के एक छोर से दूसरे छोर तक हर वस्तु में विराजमान है।








हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार ब्रह्मांड के समय को चार भागों में बांटा गया है जो इस प्रकार है....

(सतयुग, द्वापर युग, त्रेता युग, कलयुग,)
समय के इस कालचक्र को, इन चार युगों में समावेश किया गया है. जो समय की माला के चार मनके हैं,  इन चार युगों का समय निश्चित किया गया है,! वर्तमान में कलयुग चल रहा है। हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार , हर युग में ईश्वर का अवतार निश्चित है।
"सतयुग में ईश्वर का अवतार,
सतयुग में ईश्वर ने 4 अवतार लिए थे
जो इस प्रकार है,
कूर्म अवतार, वाराह अवतार, नरसिंह अवतार, मत्स्य अवतार,"


सतयुग में ईश्वर के 4 अवतार


ईश्वर का हर युग में अवतार लेने का मुख्य कारण पाप का नाश करना,व   धर्म  रक्षा करना है। भगवान श्री कृष्ण सतयुग में जो अवतार लिए उनका मुख्य कारण  था "हिरण्यकश्यप का वध करके भगत प्रल्हाद को सुरक्षित करना व शंखासुर का वध करके, वेदों कि रक्षा करना। न्याय प्रिय , सूर्यवंशी सम्राट हरिश्चंद्र का अवतरण भी सतयुग में हुआ था


"द्वापर युग में ईश्वर का अवतार,
द्वापर युग में ईश्वर ने श्री राम जी के रूप में अवतार लिया। अवतार लेने का मुख्य कारण तो आप लोग भी भलीभांति जानते हैं। ईश्वर को राम जी के रूप में अवतार लेने का मुख्य कारण घमंडी अत्याचारी रावण  का वध करना ही माना जाता है। किंतुु इनकेेे अवतार का मुख्य कारण धर्म की स्थापना करना था।






"त्रेता युग में ईश्वर का अवतार,
त्रेता युग में ईश्वर ने भगवान श्री कृष्ण के रूप में अवतार लिया। इनका मुख्य कारण यह बताया जाता है...., पापियों का वध करना व धर्म  की स्थापना करना था किंतु भगवान श्री कृष्ण के अवतार लेने की दो मुख्य वजह ओर थी, एक वजह तो यह थी की घमंडी कंस का वध करना।
दूसरी सबसे बड़ी वजह थी,,, भगवान श्री कृष्ण को यह आभास था कि कुछ ही वर्षों बाद कलयुग आने वाला है,( महाभारत का युद्ध, त्रेता युग के अंतिम अध्याय की कहानी है)
"किंतु त्रेता युग में भी कुछ ऐसे योद्धा थे"जिनमें से कुछ प्रतिज्ञा से बंधे हुए थे, कुछ मित्रता से बंधे हुए थे, कुछ वचनों से बंधे हुए थे, और इन महान योद्धाओं के पास दिव्यास्त्र थे, इसलिए भगवान श्री कृष्ण ने ,आने वाले कलयुग का अनुमान लगा लिया था। और उन्होंने सोचा इन महान योद्धाओं को और इनके दिव्याअस्त्रों  को त्रेता युग में ही नष्ट करना पड़ेगा।क्योंकि कलयुग में इनका अनुचित प्रयोग हो सकता है। इसलिए भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत का युद्ध करवाया था।,उन्होंने इस महाभारत युद्ध के माध्यम से कलयुग में भी धर्म की रक्षा की।।।





"कलयुग में ईश्वर का अवतार।
पुराणों में कहा गया है कि ,कलयुग में ईश्वर कल्कि अवतार लेंगे, और यह अवतार कलयुग के अंतिम अध्याय में होगा, और तब तक इस पृथ्वी पर पापियों की संख्या बढ़ जाएगी, हर तरफ अपराध हि अपराध होगा, तब भगवान श्री विष्णु गुजरात के एक ब्राह्मण परिवार के घर कल्कि अवतार लेंगे। और इस तरह कलयुग के अंतिम अध्याय में धर्म की पूर्ण स्थापना होगी। और सतयुग का आगमन होगा।

"जीवित भगवान के काव्य का सारांश"
जीवित  भगवान यानी विभिन्न युगों में मनुष्य रूप में  अवतरित हुए भगवान। और  हर युग में एक काव्य  की रचना हुई। जैसे त्रेता युग में महाभारत व द्वापर युग में रामायण, सतयुग में विष्णु पुराण, इन सभी  काव्यो में जीवित भगवान  यानी (मनुष्य रूप में भगवान) की लीलाओं का  वर्णन किया गया है। इनका (सारांश) यानी निचोड़ यही है, कि भगवान हर युग में  मनुष्य रूप में पाप  का नाश और धर्म की  पुनर्स्थापना करते हैं।



 1योग साधना
2, आध्यात्मिक साधना
3, कठोर हट योग साधना
4, ध्यान समाधि

1 योग साधना, यह साधना संयमपूर्वक की जाती है, जो आत्मा को परमात्मा से मिलाती हैआत्मा की वर्तियों को हम जितना अंतरमुख करते हैं, उतना ही अंधकार घटता है हमारे जीवन में और ईश्वर की प्राप्ति होती है। यह साधना केवल मात्र शरीर को हष्ट पुष्ट रखने के लिए नहीं होती है, बल्कि इससे चेतना भी जागृत होती है, यह मार्ग ईश्वर मिलन का सबसे उत्तम मार्ग बताया गया है।

2 आध्यात्मिक साधना, यह साधना कुछ इस प्रकार है जैसे कि, व्रत करना, पूजा पाठ करना, दानपुन्य करना, व तपस्या करना, योग साधना भी आध्यात्मिक साधना से जुड़ी हुई एक कड़ी है। ईश्वर प्राप्ति के लिए यह साधना प्रतिदिन अनिवार्य है, जिसमें, काम क्रोध मद लोभ वर्जित है!

3 कठोर हट योग साधना, यह साधना योग की ही एक शाखा है, जिसे (हठ योग) कहा जाता है इसकी साधना करने वाले को हठयोगी कहते हैं! वैसे यह साधना एक प्रतिज्ञा होती है, क्योंकि जब कोई साधक यह साधना करने की ठान लेता है तो वो एक प्रतिज्ञा लेता है , कि जब तक मुझे मेरे आराध्य देव की (ईश्वर कि) प्राप्ति नहीं होगी, तब तक मैं इस कठोर साधना का पालन करता रहूंगा!

4 ध्यान समाधि साधना,
देहाभिमाने गलिते लिखते परमात्मन।
यत्र यत्र मनो याती तत्र तत्र समाधय:
अर्थात, जब साधक को शरीर का ज्ञान ना रहे किंतु ईश्वर का ज्ञान हो जाए, ऐसी अवस्था में मन जहां जहां भी जाएगा वही समाधि है,अपने चित् को अपने ब्रह्मांड में स्थापित करना, और फिर ईश्वर की खोज करना यही,ध्यान समाधि साधना है, इस साधना में मनुष्य अपने शरीर को भूल जाता है, कदाचित वो इस मोह माया रूपी शरीर से  अलग हो जाता है, और तब आत्मा शुद्ध और एकाग्रता की अवस्था में होती है, इस साधना की युक्ति कोई महान संत ही बता सकता है!



टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

श्रम ब्यूरो में काम करने का अनुभव

मेरा जीवन